आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन सफलता के सात सूत्र साधनश्रीराम शर्मा आचार्य
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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...
तत्त्वदर्शी बुद्धिमानों का दृष्टिकोण इन स्थूलवादियों से सहमत नहीं होता वे
सफलता एवं विजय का मापदंड पुरुषार्थ एवं प्रयत्न को ही मानते हैं। बिना
परिश्रम अथवा पुरुषार्थ के विरासत, संयोग अथवा प्रारब्धवश नाम-धाम अथवा
धन-दौलत पा जाने वालों को वे सफल व्यक्तियों की श्रेणी में नहीं रखते और
गर्हित उपायों को अवलंबन लेकर सफल होने वालों की ओर तो वे उतना ही ध्यान नहीं
देते, जितना कि प्रारब्ध-प्रसन्न व्यक्तियों की ओर। उनका विश्वास होता है। कि
सफलता अथवा विजय का संबंध मनुष्य के पुरुषार्थ एवं परिश्रम से ही होता है
उपलब्धियों से नहीं। जिनको किन्हीं उपलब्धियों के लिए परिश्रम, प्रयत्न,
पुरुषार्थ एवं संघर्ष न करना पड़ा हो तो सफलता का श्रेय उनकी किस विशेषता से,
किस गुण से जोड़ा जाएगा। उपलब्धियाँ स्वयं में कोई सफलता नहीं है। यह तो
सफलता की परिचायक प्रतीक मात्र होती हैं। प्रतिद्वन्द्वी के 'पस्त-हिम्मत'
होने के कारण कोई पहलवान अखाड़े में उतरे बिना ही विजयी घोषित नहीं माना जा
सकता। उसकी विजय की घोषणा तो वास्तव में प्रतिद्वंद्वी की साहसहीनता की सूचना
होती है। इस प्रकार की घटना में यह घोषणा प्रस्तुत पक्ष की विजय ही नहीं,
निरस्त पक्ष के पराजय की होनी चाहिए।
पुरुषार्थ में विश्वास रखने वाले सच्चे कर्मवीर जीवन में कभी असफल अथवा
परास्त नहीं होते। उनकी पराजय तो तब ही कही जा सकती है, जब वे एक बार की
सफलता से निराश होकर निष्क्रिय हो जाएँ और प्रयत्न के प्रति हथियार डाल दें।
सच्चा कर्मवीर एक क्या हजार बार की असफलता से भी पराजय स्वीकार नहीं करता।
जीवन के अंतिम क्षण तक उपलब्धियों का मुख न देख सकने वाले प्रयत्न निरत
कर्मवीरों को असफल अथवा पराजित कौन, किस मुंह से, कहने का साहस कर सकता है ?
इतिहास ऐसे न जाने कितने कर्मवीरों की गौरव-गाथा से भरा पड़ा है, जो
जीवन-संग्राम में अनेक बार हारकर भी नहीं हारे, और ऐसे उदाहरणों की भी कमी
नहीं है कि विजयी होने पर भी जिनका नाम पराजितों की सूची में ही लिखा गया।
राणा प्रताप, पोरस तथा पृथ्वीराज चौहान ऐसे ही कर्मवीरों में से हैं, जो
स्थूल रूप से हारकर भी नैतिक रूप से पराजित नहीं हुए। श्रृंखलाओं एवं संकटों
के बीच भी उन्होंने अपने को पराजित स्वीकार नहीं किया। जीवन का अंतिम अणु-कण
संघर्ष के दाव पर लगा देने के बाद भी विजय न पा सकने वाले यह वीर आज भी विजयी
व्यक्तियों के साथ ही गिने जाते हैं। उनकी परिस्थितियाँ अवश्य हारीं किंतु
उनके प्रयत्न कभी पराजित न हुए। यही उनकी विजय है जिसे यशस्वी कर्मवीरों के
अतिरिक्त साधन संपन्नता के बल पर संयोगिक विजय पाने वाले कर्महीन कायर कभी
नहीं पा सकते।
अकबर, अशोक और अलाउद्दीन खिलजी जैसे विजयी उन व्यक्तियों में से हैं, जिनकी
जीत भी आज तक हार के साथ ही लिखी जाती है। कलिंग का श्मशान बन जाना एक विजय
थी और अशोक का नगर पर अधिकार कर लेना एक पराजय। पद्मनी का जल जाना, भीमसिंह
और गोरा बादल का जौहर कर डालना एक विजय थी और चित्तौड़ पर खिलजी का अधिकार एक
पराजय थी। वन-वन फिरकर घास की रोटी खाने वाले प्रताप की आपत्ति एक विजय और
मेवाड़ पर अकबर का झंडा फहराना एक पराजय। यह ऐसी पराजय थी जिसे अकबर ने स्वयं
स्वीकार किया था। जय-पराजय की इन गाथाओं में जीत-हार का मापदंड आदर्श,
पुरुषार्थ, पराक्रम, साहस, धैर्य एवं प्रयत्न ही रहा है। राज्य अथवा नगरों पर
अधिकार नहीं।
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- सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
- सफलता की सही कसौटी
- असफलता से निराश न हों
- प्रयत्न और परिस्थितियाँ
- अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
- सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
- सात साधन
- सतत कर्मशील रहें
- आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
- पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
- छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
- सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
- अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए